हिंदी के साथ बघेली, भोजपुरी, राजस्थानी और मराठी में मिलाया सुर

देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला में अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर अनूठा आयोजन किया गया। इस आयोजन में हिंदी के साथ बघेली भोजपुरी राजस्थानी और मराठी भाषा में भी सुर की गूंज हुई। वर्ष 1999 में संयुक्त राष्ट्र के द्वारा अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की घोषणा की गई थी। आज इस दिवस के अवसर पर एक मुख्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में अध्ययनशाला में अध्ययन करने वाली छात्राओं के द्वारा अपनी मातृभाषा में अपनी बात को प्रस्तुत किया गया। इस आयोजन में कशिश सिंह बघेल ने बघेली भाषा में रिश्तों की उलझन को बताया तो सजल जैन ने राजस्थानी भाषा में लोकगीत को प्रस्तुत किया। इसके साथ ही अनुश्री करणकार ने भगवान विट्ठल पर अपना गीत मराठी भाषा में प्रस्तुत किया, वही पल्लवी सिंह ने भोजपुरी में छठ की पूजा का गीत प्रस्तुत किया। इस कार्यक्रम में हिंदी भाषा में विशाखा भट्ट ने भगवान राम पर कविता सुनाते हुए वर्तमान दौर को जीवंत किया और भगवान से प्रार्थना की कि आप अब आ जाओ लेकिन मंदिर में मत रहना। इसके साथ ही दिव्यांशी महादिक ने कर्ण का दर्द अपने शब्दों से उजागर किया। एक सूत पुत्र की व्यथा को उन्होंने जीवंत बना दिया। राष्ट्रीय शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास की महिला विभाग के कार्यों की प्रभारी शिक्षाविद शोभा ताई पैठणकर ने कहा कि हम अपनी संवेदनाओं को अपनी भाषा में ही पहुंचा सकते हैं। हम जब भी कुछ भी सोचते हैं तो हम अपनी मातृभाषा में सोचते हैं। हम जब भी कोई सपना देखते हैं तो वह अपनी मातृभाषा में देखते हैं। हमें अपने बच्चों को घर में शुरुआत से मातृभाषा से जोड़ने का काम करना चाहिए। यदि बच्चा मातृभाषा से टूट जाएगा तो वह परिवार, संस्कार और सभ्यता से भी जुड जाएगा। इस अवसर पर अध्ययनशाला की विभाग अध्यक्ष डॉ सोनाली नरगुंदे ने भाषा के माध्यम से किए जाने वाले संचार और उसके महत्व को प्रतिवादित किया। उन्होंने कहा कि हमें अपनी मातृभाषा में बोलने में शर्म और झिझक महसूस नहीं करना चाहिए। हमें इस बात पर गौरव करना चाहिए कि हम अपनी भाषा में अपनी बात को रख पा रहे हैं । उन्होंने कहा विविध भाषाओं के भारत में सभी भाषाओं को जीवंत रखने की जिम्मेदारी हमारी है। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से लेकर महात्मा गांधी तक के प्रयासों से भाषा का स्वरूप बचा हुआ है। हमें मातृभाषा के साथ हिन्दी के मानकीकरण पर काम करना होगा।कार्यक्रम का संचालन प्रो सुब्रत गुहा ने किया। आभार प्रदर्शन रामसागर मिश्र संयोजक राष्ट्रीय शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास मालवा प्रांत ने किया।

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