
मौसम अपना धर्म नहीं छोड़ता, ऋतु अपना धर्म नहीं छोड़ती, हमसे गुरू भक्ति कैसे छूट सकती हैं। ध्यान रहे गुरू के प्रति श्रद्धा होने से ही ज्ञान होता है। जीवन में अनेकांत और स्वाध्याय का होना आवश्यक है। एक वस्तु में अनेक धर्म होते हैं। आचार्यश्री ने दृष्टांत के माध्यम से बताया कि संसार में आम को देखकर मुंह में लार रसायन उत्पन्न होते हैं। उसी प्रकार भगवान के दर्शन से सम्यकदर्शन की प्राप्ति होती हैं और मिथ्यात्व की समाप्ति होती हैं। यदि गुरू के प्रति शिष्य श्रद्धा न रखें तो उसे ज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता। प्रकृति में सर्दी, गर्मी, वर्षा अपना स्वभाव नहीं छोड़ सकती उसी प्रकार जैन धर्म की कल्पना बगैर रसायन संभव नहीं है। वस्तु की विशालता वस्तु से नहीं दृष्टि से होती हैं। जगत में ऐसा कोई मंत्र नहीं जो एकांत में हो और कोई वस्तु नहीं जो एकांत में हो। गुरू और शिष्य की एक-दुसरे के प्रति श्रद्धा का होना जरूरी हैं जब तक श्रद्धा नहीं होगी तब तक ज्ञान का उदय नहीं होगा। उक्त विचार आध्यात्म योगी शताब्दी देशनाकार आचार्यश्री विशुद्ध सागर महाराज ने गांधी नगर गोधा एस्टेट स्थित सुमतिधाम में आयोजित 6 दिवसीय पट्टाचार्य महोत्सव के देशना मंडप में प्रवचनों की अमृत वर्षा करते हुए व्यक्त किए। आचार्यश्री ने कहा कि जिस घाट पर गाय ओर शेर एक साथ पानी पीते हैं वहां जिन धर्म होता है। जिन शासन ही मेरा संघ हैं, जिन आज्ञा ही मेरी परंपरा है। देशना मंडप में विराजमान आचार्यश्री पुष्पदंत सागर महाराज एवं गणिनी आर्यिका माता ने भी गुरू भक्तों पर प्रवचनों की अमृत वर्षा की। भारतवर्षीय दिगंबर जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी के पदाधिकारियों ने आचार्यश्री व उनके संसघ को श्रीफल भेंट कर आशीर्वाद प्राप्त किया। आचार्यश्री विशुद्ध सागर महाराज की आहारचर्या का सौभाग्य प्रभा देवी गोधा, मनीष-सपना गोधा परिवार को प्राप्त हुआ। आचार्यश्री के साथ ही 12 आचार्य, 8 उपाध्याय, 140 दिगंबर मुनि, 9 गणिनी आर्यिका, 123 आर्यिका माता जी, 105 ऐलक, क्षुल्लक, क्षुल्लिका की आहारचर्या भी इन्हीं 360 चौकों में संपन्न हुई। दोपहर में प्रसिद्ध उद्योगपति अशोक पाटनी सहपरिवार पहुंचे। उन्होंने सौभाग्य सदन में आचार्यश्री को श्रीफल भेंट कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया। श्री सुमतिनाथ दिगंबर जिनालय गोधा एस्टेट, पट्टाचार्य महोत्सव समिति, गुरू भक्त परिवार एवं मनीष-सपना गोधा ने बताया कि सुमतिधाम में गणाचार्य विराग सागर महाराज की प्रेरणा व मार्गदर्शन में निर्मित विरागोदय तीर्थ की प्रतिकृति गुरू भक्तों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। आचार्य श्री विमलसागरजी महाराज के शिष्य गणाचार्य विराग सागर महाराज के साहित्य सृजन को भी अलग से स्वाध्याय मण्डप बनाकर प्रस्तुत किया गया है।